Wednesday 11 June, 2008

Marwari Samaj देखो ! हम कितने सभ्य हो चुके हैं।




देख....मानवीय सभ्यता का यह दौर!


जहाँ शिक्षित हो इंसान,


शोषण कर रहा इंसानों को,


सभ्यता का दे नाम।



देख ....मानवीय सभ्यता का यह दौर!


जहाँ असभ्य बनता जा रहा इंसान,


नंग-धड़ंग हो नाच रहा है,


सभ्यता का दे नाम



देख ....मानवीय सभ्यता का यह दौर!


शहर के रहने वाले;


गांवों की तुलना में,


कहिं ज्यादा दिखते हैं परेशान।


रिश्ते- नाते सबके सब हो चुके हैं


एक दूसरे के हैवान।


किसीको कुछ भी पता नहीं।


कौनकिसको कब 'खा' जायेगा,


सभ्यता का दे नाम।



देख....मानवीय सभ्यता का यह दौर!


हम सभ्य हो चुकें हैं इतना कि......


खुद के बच्चे हम से बिछुड़ते जा रहे,


बुढ़े माँ-बाप खोज रहें हैं एक आशियाना।


पत्नी बात नहीं कर पा रही।


देखो!! कितने सभ्य हो चुके हैं हम।


हमारी वेशर्मियत कई ह्दों को पार करती जा रही ।


एक-दूसरे के इज्जत के प्यासे हो चुके हम।


फिर भी चुपचाप सहते सब जा रहे हैं।


देखो !! हम इतने सभ्य हो चुके हैं,


कि सभ्यता भी हमसे शर्माने लगी


सभ्यता का दे नाम।





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मानवीय संवेदना का एक पलकितना भयानक हो चला है।



माँ-बाप, भाई-बहन, पति-पत्नी,



ये तो हो चुके पुराने,



सबके सब तलाश रहें।



आज एक नये रिश्ते।



WRITTEN BY


-शम्भु चौधरी, एफ.डी. - 453/2, साल्टलेक सिटी, कोलकाता -

samajvikas@gmail.com



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