Tuesday 27 May, 2008

राक्षस का मुखौटा




रामदास जी ने अपने पुराने मकiन को तुड़वा कर नया माकन बनवाया !जब तक माकनबना उनके परिवार प्रत्येक सदस्य कारीगरों के पास बारी-बारी से बैठा रहता !कहीं कोई कमी रहती तो कारीगरों को तुरंत टोका जाता ! खैर किसी तरह मकानबन कर तैयार हो गया !रंग -रोगन भी हो गया ! सुबह देखा तो उनके मकान कीबाहरी दीवार पर भयानक शक्ल वाला बडा सा राक्षस का मुखोटा लगा था !उस कीशक्ल इसी थी कि राह चलते प्रत्येक व्यकित कि निगाहें उस पर पडती थी !एकदिन बातों-बातों में इस का राज एवम लाभ पूछा तो उन्होंने ने बडे संतोषजनकभाव से बताया कि इससे घर को बुरी नज़र नहीं लगती है !उनकी इस बात पर मुझेहँसी आ गयी !मुझे हँसता देख उन्होंने बुरा सा मुंह बनाया और कहा कि आप कोपता नहीं है इस लिए हंस रहें हो !मैनें इसका कारण पूछा तो वे इतना हीजवाब दे पाए कि सब लगाते हैं !हम अनेक प्रचलित बातों , परम्पराओं का कारण जाने बिना मानते रहते हैंजबकि हो सकता है वे उचित न हों !इसी प्रकार राक्षस का मुखोटा लगाना किसीभी प्रकार उचित नहीं मन जा सकता है !यह ठीक उसी प्रकार है जैसे कोईलुटेरे को घर दी सुरक्षा सोंप दे ! राक्षस तामसिक तत्व है !इससेनकारात्मक उर्जा उत्पन्न होती है !धीरे-धीरे यह नकारात्मक उर्जा संचित होकर घर का वातावरण बिगड़ देती है ! घर में कलह ,तनाव का वातावरण बन जाताहै !जिस घर को बुरी नज़र से बचाना चाहते थे उसी में आशान्ति छा जाती है !जिस प्रकार समान पेशे से जुड़े लोगों में तुरंत मित्रता हो जाती है उसीप्रकार नकारात्मक उर्जा भी नकारात्मक उर्जा से तुरंत मिल जाती है !वायुमंडल में व्याप्त राक्षसी उर्जा अपने सम्बन्धी को देख वहाँ नहींरुकेगी इस बात कि क्या गारंटी है ! बजाए इस के कि राक्षस का मुखोटा लगायाजाए हमारे शुभ मांगलिक प्रतीक चिन्ह का प्रयोग करना ज्यादा प्रशस्तहोगा ! स्वस्तिक ,ॐ देवी ,त्रिशूल या गणेश जी जो अमृत कि वर्षा करते हैंको भवन के बाहर लगाया जा सकता है ! जब रावण की लंका की रक्षा, लंकिनीनामक राक्षसी [जो कि वहाँ कि पहरेदार थी ] ही नहीं कर सकी जिसे मुखोटे काप्रतीक मान सकतें हैं तो हमारे घर कि रक्षा ये राक्षस के मुखोटे क्या करसकेंगे !



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1 comment:

HARSHIT GUPTA said...

ट्रक बस या गाड़ी से लटकता पुराना जूता
बच्चे के माथे या कान के पीछे काजल का टीका
इत्यादि सब ऐसी ही प्रथाएँ हैं .. कैसे दूर हों ?
यदि प्रथाओं के कारण पता चलते रहें तो सरलता से आनुचित प्रथाओं से छुटकारा हो
जाए

शर्मणः
From: "peekay" pksharmakolkata@gmail.com Add sender to Contacts To: hindibhasha@googlegroups.com